वरद हस्त अभय बन तेरा, कण्ठहार बने मेरा। वरद हस्त अभय बन तेरा, कण्ठहार बने मेरा।
जो भी निकट तुम्हारे पहुंचता, वे अपने में ही खो जाते हैं जो भी निकट तुम्हारे पहुंचता, वे अपने में ही खो जाते हैं
हस्त की रेखाओं को, गढ़ना पड़ता है। हस्त की रेखाओं को, गढ़ना पड़ता है।
रोज नित्य होत योग, पूर्ण दूर होत रोग, कर्म भार होत भोग, नित्य पूर्ण ज्ञान लो रोज नित्य होत योग, पूर्ण दूर होत रोग, कर्म भार होत भोग, नित्य पूर्ण ज्...
स्वर्ग समान सकल जग होगा , जब इक दूजे से हम प्यार करेंगे। स्वर्ग समान सकल जग होगा , जब इक दूजे से हम प्यार करेंगे।